Friday, June 7, 2013

तेरी आँखें मुझे बहका रहीं हैं
मुहब्बत करने को उकसा रहीं हैं

उजाला ख़ुद अंधेरों का है ख़ालिक़
मुझे परछाईयाँ बतला रहीं हैं

मुझे देखा जो महफ़िल में तभी से
मेरी तन्हाइयां पछता रहीं हैं

यही मौक़ा है आओ ख़्वाब देखें
अभी नींदें ज़रा सुस्ता रहीं हैं


1 comment:

  1. यही मौक़ा है आओ ख़्वाब देखें
    अभी नींदें ज़रा सुस्ता रहीं हैं
    .......... क्या बात कही है .. बहुत खूब .. बढ़िया गज़ल !

    ReplyDelete