Wednesday, January 29, 2014

मां-बाप कि ग़ुर्बत पे यूँ पड़ता रहा पर्दा
भाई कि कमीज़ों को बड़े शौक़ से पहना

 जिसने कभी उतरन नहीं पहनी हो क्या जाने
खद्दर  का लबादा मुझे क्योंकर नहीं चुभता

कल मेरा था, अब उसका है कल होगा किसी का
मैं उसका था मैं उसका हूँ मैं उसका रहूँगा

जिसने मुझे आज़ाद किया क़ैद-ए-बदन से
मैं उसको दुआएं नहीं देता तो क्या करता

Monday, January 20, 2014

प्यार मुझसे जताती रहती  है
और फिर आज़माती  रहती है

ज़िक्र मेरे   सुधरने  का करके
ऐब मेरे गिनाती रहती है

मेरी तन्हाइयों के शानों पर
याद चाबुक चलाती रहती है

उसको आना है ख्वाब में शायद
नींद चक्कर लगाती रहती है

दर्द अपने सुनाने को दुनिया
शेर' मुझसे लिखाती रहती है !