Wednesday, July 15, 2015

किसी मज़लूम की आहों की अब तासीर होना है
क़लम सुन ले तुझे इस दौर की  शमशीर होना है

मैं उसकी आँखों का काजल था उसने पोंछ ली आँखें
सो अबकी बार उसके पाऊँ की ज़ंजीर होना है

ये मुश्किल आपकी है आप आख़िर किसके होते हैं
हमे तो आपकी बस आपकी जागीर होना है

दुआएं मांगते हैं इसलिए अपने उजड़ने की
हमें तो यार तेरे हाथ से तामीर  होना है

हवा को क्या ख़बर आख़िर मैं इसको क्यों  बुलाता हूँ
मुझे अपनी उड़ाकर ख़ाक आलमगीर होना है