Friday, May 13, 2016

कई बार हमको मुहब्बत हुई
मगर तू भी दिल से न रुख़्सत हुई

तुझे सोचने बैठ जाता हूँ फिर
तुझे सोचने से जो फ़ुर्सत हुई

मुहब्बत के दुश्मन ख़बरदार हों
हुई फिर किसी को मुहब्बत हुई

चलन बन गया चाक-दामन मेरा
मेरी उस गली में वो इज़्ज़त हुई

वो अब चाहिए अब नहीं चाहिए
ये चाहत हुई या कि नफ़रत हुई